#new #rap #music
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INSTAGRAM :- https://instagram.com/the_shloka?igshid=YmMyMTA2M2Y=
FACEBOOK :- https://www.facebook.com/shlokaofficial
मंजिल एक छलावा है और रास्ता एक सच! तो पेश है एक राहगीर के कुछ लफ्ज़। ✍️
???? 'पंचतत्व' का चौथा तत्व समीर (वायु/हवा) का प्रतिनिधित्व करता यह गीत आपसब को वैसा ही शीतल परंतु कठोर भी लगेगा ।
... तो पेश है एक और सुरमयी 'श्लोकगीत' आप सब के बीच ! आशा है यह गीत आप सब श्रोताओं/ दर्शकों को फिर से एक अलग अनुभव देगा । धन्यवाद ????????
Lyrics & Composition :- Shloka
Music:- ||Vaasa- M||
Mixing & Mastering :- Abin Paul
Video:- Easeus
Director :- Ashmit Shahi
Cinematography:- Sunny Singh
Concept:- Shloka
Merch:- https://www.urbanmonkey.com
Business :- theshloka@gmail.com
Lyrics:-
Verse1:-
एक सफर पे मैं कई बरस से हूं
बस नजर टिकाए सड़क पे हूं
ना जहन में कोई कसक रखा
बस सबर से अपनी डगर चलूं
क्या गिराओगे जिन्दगी? हर दफा मैं
उठा! खुद से खुद का दूं भोर उगा
किसी चिता के जलने पे जो धुआं निकले ,
धुआं उतना कब का हूं घोंट चुका
अब नीचे है बिस्तर के रिश्तों के मलबे
कहने को सत्तर हैं कितने थे अपने
सीने पे पत्थर और छिलते थे तलवे
पर मरने से बदतर था मरते जो सपने
वेग रूका गर दबे ख़्वाब
यहां ढ़ेर छुपे हैं डरे ख़्वाब
तुम खोद लो कभी किसी कब्र
मिले एक लाश कई मरे ख़्वाब
Hook:-
गुम़ कहीं हूं खुद में ही और खुद को पाने चला
खुदी को खुद में ढूंढता मैं खुद का खुद हमनवा
Verse:2
जब हर तरफ सर्द रात घेरे
उस वक़्त लफ्ज़ साथ मेरे
जब तलक हर्फ हाथ लिखे
तब तलक अर्श हाथ मेरे
सोचा ना चलने से पहले कि होगा कमबख्त क्या अंज़ाम
जो होना सो होगा ना रखता मैं कोई सल्तनत का अरमान
वो बिछड़ गये जो करीब थे
सब बिखर गये हम वहीं पे थे
हर शिकस्त से हर शिखर तलक
हम सिफर में बैठे फकीर से
तो मत डरा तू जलजला ए शोर
चल रहा हूं सब लगा के जोर
जिस खुदी का मिलना खुदा है
चल पड़ा मैं उस खुदा के ओर
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मंजिल एक छलावा है और रास्ता एक सच! तो पेश है एक राहगीर के कुछ लफ्ज़। ✍️
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Verse1:-
एक सफर पे मैं कई बरस से हूं
बस नजर टिकाए सड़क पे हूं
ना जहन में कोई कसक रखा
बस सबर से अपनी डगर चलूं
क्या गिराओगे जिन्दगी? हर दफा मैं
उठा! खुद से खुद का दूं भोर उगा
किसी चिता के जलने पे जो धुआं निकले ,
धुआं उतना कब का हूं घोंट चुका
अब नीचे है बिस्तर के रिश्तों के मलबे
कहने को सत्तर हैं कितने थे अपने
सीने पे पत्थर और छिलते थे तलवे
पर मरने से बदतर था मरते जो सपने
वेग रूका गर दबे ख़्वाब
यहां ढ़ेर छुपे हैं डरे ख़्वाब
तुम खोद लो कभी किसी कब्र
मिले एक लाश कई मरे ख़्वाब
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गुम़ कहीं हूं खुद में ही और खुद को पाने चला
खुदी को खुद में ढूंढता मैं खुद का खुद हमनवा
Verse:2
जब हर तरफ सर्द रात घेरे
उस वक़्त लफ्ज़ साथ मेरे
जब तलक हर्फ हाथ लिखे
तब तलक अर्श हाथ मेरे
सोचा ना चलने से पहले कि होगा कमबख्त क्या अंज़ाम
जो होना सो होगा ना रखता मैं कोई सल्तनत का अरमान
वो बिछड़ गये जो करीब थे
सब बिखर गये हम वहीं पे थे
हर शिकस्त से हर शिखर तलक
हम सिफर में बैठे फकीर से
तो मत डरा तू जलजला ए शोर
चल रहा हूं सब लगा के जोर
जिस खुदी का मिलना खुदा है
चल पड़ा मैं उस खुदा के ओर
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